पटना, १० अक्टूबर। आधुनिक हिन्दी की प्रथम पीढ़ी के महान कवियों और भाषाविद विद्वानों में अग्रपांक्तेय मनीषी पं जगन्नाथ प्रसाद चतुर्वेदी, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के प्रथम सभापति थे। हिन्दी भाषा और साहित्य के उन्नयन में उनका अप्रतिम योगदान था। वे हिन्दी के एक चलते-फिरते विश्वविद्यालय थे। उनके सान्निध्य में आनेवाला प्रत्येक व्यक्ति भाषा और साहित्य का कुछ नया सीख कर जाता था।
यह बातें शुक्रवार को, साहित्य सम्मेलन में आयोजित, जयंती और कवि सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने कहा कि चतुर्वेदी जी अपने गम्भीर-चिंतन के लिए ही नहीं अत्यंत लालित्यपूर्ण हास्य-व्यंग्य के लिए भी साहित्य-जगत में समादृत थे। उन्हें ‘हास्य-रसावतार’ की संज्ञा दी जाती थी। साहित्यिक-मंचों की शोभा थे चतुर्वेदी जी। उनका मंच पर आते ही, सभागार तालियों से गुंजायमान हो उठता था। काव्य में छंद के प्रति विशेष आग्रह रखने वाले चतुर्वेदी जी गद्य साहित्य में भी रोचकता और लालित्य के पक्षधर और हास्य-व्यंग्य में फूहड़ता तथा व्यक्तिगत आक्षेप के प्रबल विरोधी थे।
सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद, डा मधु वर्मा, डा रत्नेश्वर सिंह, विभारानी श्रीवास्तव तथा राज आनन्द ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
इस अवसर पर आयोजित कवि-सम्मेलन का आरंभ चंदा मिश्र की वाणी-वंदना से हुआ। वरिष्ठ शायरा शमा कौसर ‘शमा’, डा ओम् प्रकाश पाण्डेय ‘बदनाम’, कुमार अनुपम, मोईन गिरिडिहवी, डा रेणु मिश्रा, सदानन्द प्रसाद, नीता सहाय, उत्पल कुमार, सूर्य प्रकाश उपाध्याय, इन्दु भूषण सहाय तथा बाँके बिहारी साव ने भी अपनी रचनाओं का पाठ किया। मंच का संचालन कवि ब्रह्मानन्द पांडेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।
डा नवल किशोर शर्मा, पवन कुमार प्रभाकर, सच्चिदानन्द शर्मा, दुःख दमन सिंह, मधेश्वर शर्मा, भास्कर त्रिपाठी, सूरज कुमार, हेमन्त कुमार सिन्हा, नन्दन कुमार मीत आदि प्रबुद्ध जन उपस्थित थे।























