Kaushlendra Pandey/political Editor:राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत द्वारा 75 वर्ष की उम्र में स्वेच्छा से पद छोड़ने की सार्वजनिक मंशा ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के अंदरखाने हलचल तेज कर दी है। यह बयान न सिर्फ संघ की कार्यशैली में अनुशासन और वैचारिक शुचिता का संकेत देता है, बल्कि अब इसे भाजपा के शीर्ष नेतृत्व पर नैतिक दबाव के रूप में भी देखा जा रहा है।
गौरतलब है कि भाजपा के वरिष्ठ नेताओं जैसे लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी को 75 की उम्र के बाद सक्रिय राजनीति से अलग कर दिया गया था। अब जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद 2025 में 75 वर्ष के होने जा रहे हैं, ऐसे में मोहन भागवत का बयान पार्टी और सरकार दोनों के लिए एक बड़े संदेश के रूप में देखा जा रहा है।
भाजपा और आरएसएस के बीच बीते एक वर्ष में रिश्तों में खिंचाव की खबरें समय-समय पर सामने आती रही हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण भाजपा द्वारा अब तक नया राष्ट्रीय अध्यक्ष न चुन पाना है। पार्टी और संघ के बीच आम सहमति न बन पाने के कारण दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी का दावा करने वाली भाजपा दो साल से संगठनात्मक नेतृत्व के संकट से जूझ रही है।
अब संघ ने इस मामले में प्रत्यक्ष हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया है। भाजपा की ओर से प्रस्तावित नामों को संघ लगातार खारिज कर रहा है, जिससे स्पष्ट संकेत मिल रहे हैं कि अब संघ नेतृत्व भाजपा के सांगठनिक और वैचारिक संतुलन को अपने हाथ में लेना चाहता है।
इस पूरे घटनाक्रम ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या नरेंद्र मोदी 75 साल की उम्र पूरी होने पर प्रधानमंत्री पद से हटने का फैसला करेंगे? और क्या यह निर्णय भी संघ की नैतिक लाइन से प्रभावित होगा?
भाजपा के किसी भी नेता ने फिलहाल मोहन भागवत के बयान पर कोई सार्वजनिक टिप्पणी नहीं की है, लेकिन पार्टी के भीतर इस बयान को लेकर गंभीर चर्चाएं जरूर जारी हैं।
(रिपोर्ट: कंट्री इनसाइड न्यूज एजेंसी)





























