पटना, ३ जुलाई। “अपनी ख़्वाहिश के परींदे पर निशाना रखना/ ज़िंदगी का जो सफ़र है सुहाना रखना—- गुलों से बात करने में जो बेअदबी करते हैं/ नीयत में उनके ईश्वर नुक़िले खाद देता है”। बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के फ़ेसबुक पटल पर, शुक्रवार की संध्या ६ बजे से ७ बजे तक इसी तरह की अनेक, दिल को छूने और गुदगुदाने वाली पंक्तियाँ सुनने को मिली। अपनी रचनाओं के साथ इस पटल पर लाइव थे, राष्ट्रीय मंचों के लोकप्रिय और चर्चित कवि डा सुरेश अवस्थी। एक घंटे के इस लाइव कार्यक्रम में डा अवस्थी ने अनेक रंगों और अनुभूतियों की रचनाओं के साथ अपने जीवन-अनुभवों की भी व्यापक चर्चा की।
अपनी इन पंक्तियों से उन्होंने उन लोगों को नसीहत दी जो जीवन को छल-प्रपंच की दृष्टि से देखते हैं – “छत पर चढ़कर जो मारते सीढ़ी को ही लात/ जीवन में बनती नही उनकी बिगड़ी बात/ छल-प्रपंच और झूठ का जो करते व्यापार/ वक़्त ऐसे लोग को पल-पल देता मार”। बुज़ुर्गों के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त करते हुए कहा- “घर को होटल की तरह ख़ूब सजाना लेकिन/ मन के कोणों में बुज़ुर्गों का ठिकाना रखना/”
कविता की बात करते हुए उन्होंने कहा कि “पीड़ा का अनुवाद है कविता/ ख़ुद से एक संवाद है कविता”। ‘ग़ज़ल’ की बात इस तरह की कि “जाने कितने रिश्ते तय कर आइ है ग़ज़ल/ अब हमारे घर में आकर मुस्कुराइ है ग़ज़ल।”
सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने डा अवस्थी समेत पटल से जुड़े एक हज़ार से अधिक सुधी साहित्यकारों एवं श्रोताओं का स्वागत किया। डा सुलभ ने बताया कि ४ जुलाई को राष्ट्रीय-सद्भाव के अत्यंत लोकप्रिय कवि वाहिद अली ‘वाहिद’ इस पटल पर अपने ओज के छंदों के साथ लाइव रहेंगे।