दरभंगा: मुस्लिम समुदाय द्वारा आज अलविदा जुमा की नमाज़ अदा की जाएगी।
मुसलमानों द्वारा रमजान माह के आखरी जुमा को नम आँखों से पढ़ा जाता है।
आज जब मुसलमान अलविदा जुमे की नमाज पढ़ेंगे तो उनके दिलों में एक रंज व गम होगा कि यह फजीलत वाला जुमा और माह हम से रुखसत हो रहा है। अब 11 महीनों के बाद ही यह फिर हमारे नसीब में होगा कि नहीं इसलिए सब इसको अपनी नम आंखों के साथ रोते हुए रुखसत करते हैं।
इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार इस माह में एक एक इबादत के बदले सत्तर गुना पुण्य की प्राप्ति होती है।
इसलिए इस माह को रहमत व बरकत वाला महीना भी कहा जाता है।
ऐसे में जब इस महीने की विदाई का समय आता है तो मुस्लिम समुदाय की ऑंखें नम होने लगती है। जबकि इस माह के खत्म होते ही ईद की खुशियां प्रतीक्षा में होती है फिर भी अधिकतर लोगों को इस माह के जाने का गम होता है।
इस्लामिक कैलेंडर के
नौवें माह रमजान को इबादतों के लिए खास माना गया है। मुस्लिम समुदाय द्वारा इस माह के तीस दिन रोज़े रखे जाते हैं, पांच वक्त की नमाज़ के अलावा रात्रि में विशेष रूप से तरावीह की नमाज़ अदा की जाती है। शाम को सामूहिक रूप से इफ्तार करने व कराने का अलग ही आनंद है। इस माह के आखरी दस दिनों तक मस्जिद में गुजारकर एकांतवाश में एकाग्रता के साथ इबादत का भी बड़ा महत्व है जिसे ऐतकाफ कहते हैं। इस माह लोग बढ़ चढ़ कर गरीब ज़रूरतमंदों की मदद करते हैं।
अलविदा जुमा रमजान माह में पड़ने वाले चार पांच जुमा में आखरी जुमा होता है। इस जुमा के गुज़र जाने से ग्यारह माह बाद ही फिर रमजान का जुमा मिलता है इसलिए इस जुमा को खास महत्व दिया जाता है।
मुसलमानों के लिए तो जुमे का दिन साप्ताहिक ईद की तरह होता है लेकिन ईद से ठीक पहले अदा किया जाने वाला अलविदा जुमा को ईद से पहले ईद की तरह ही समझाता जाता है।
सामाजिक कार्यकता व प्रसिद्ध दरगाह हज़रत भीखा शाह सैलानी के खादिम शाह मोहम्मद शमीम के मुताबिक वैश्विक महामारी कोरोना संक्रमण के कारण देश भर में लागू लॉकडाउन के कारण सभी धार्मिक स्थलों में आम लोगों के प्रवेश पर पाबन्दी से इस वर्ष दरभंगा के मुस्लिम समुदाय को भी अलविदा जुमा व ईद की नमाज़ घर से ही अदा करनी होगी।
श्री शमीम ने आगे बताया कि दरभंगा कमिश्नरी के काज़ी मुफ़्ती गफ्फार शाकिब व अन्य उलेमाओं ने अपने अपने स्तर पर अपील जारी कर मुस्लिम समुदाय से कहा है कि सरकार के आदेशों का पालन करते हुए इस साल अलविदा-जुमा व ईद की नमाज़ घरों में रह कर ही अदा करें। मस्जिदों व ईदगाहों में आम लोगों के लिए सख्त पाबन्दी है।
शाह मोहम्मद शमीम ने भी आम अवाम से अपील कर कहा है कि इस दिन की दर्द भरी दुआएं ज्यादा कुबूल होती हैं। मुसलमानों को चाहिए कि अपने-अपने घरों में हर जुमे की तरह ज़ोहर की नमाज़ पढ़कर अल्लाह से रो रो कर दुआ करे और अपने गुनाहों की माफ़ी मांगे। सभी लोग दुनिया में फैली महामारी कोरोना वायरस और हर बला-मुसीबत से निजात, खुशहाली व आपसी भाईचारा के लिए दुआ करें।
उलेमाओं ने लोगों से यह भी कहा है कि ज़्यादा से ज़्यादा गरीबों व बेसहारों की मदद करें। शासन-प्रशासन के आदेशों का प्लान व सहयोग करें।
जन प्रतिनिधि व सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा भी समाज में जागरूकता का प्रयास जारी है। ईद पर लोगों से सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने, हाथ न मिलाने व गले न मिलने की अपील की जा रही है। कॉल/मैसेज से एक दूसरे को ईद की मुबारकबाद व शुभकामनाएं देने को कहा जा रहा है।
कुमार बिनोद, संवाददाता