अनुज मिश्रा,
पटना, ११ मार्च। सुप्रसिद्ध कथा–लेखिका डा ममता मेहरोत्रा की लघुकथाएँ सीधे मर्म पर प्रहार करती हैं। उनकी लघुकथाओं में जीवन की कटु सच्चाइयाँ और समाज की पीड़ा अपनी पूरी संप्रेषणीयता के साथ सामने आती हैं। इनमें पीड़ा की अभिव्यक्ति ही नही, प्रतिकार के स्वर भी मुखर होते हैं। ये कहानियाँ हमें समाज की त्रासदपूर्ण स्थितियों पर चिंतन करने पर भी विवश करती हैं।
यह बातें, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में गत सोमवार को डा मेहरोत्रा, डा सतीशराज पुष्करणा तथा डा ध्रुब कुमार की लघु–कथाओं के साझा संकलन ‘नो एंट्री जोन‘ के लोकार्पण–समारोह की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि इस संकलन के तीनों ही रचनाकार कथा–साहित्य की इस लोकप्रिय विधा में अत्यंत निपुण और इसके रचना–विधान में पारंगत हैं। यही कारण है कि संकलन की प्रायः सभी लघुकथाएँ साहित्य के लालित्य और कथ्य के कसाव के साथ अपने उद्देश्यों में सफल हैं। ये कथाएँ गीत और ग़ज़ल का स्वाद और प्रभाव रखती हैं।
पुस्तक का लोकार्पण करते हुए, वरिष्ठ पत्रकार स्वयं प्रकाश ने कहा कि स्वार्थ और अहंकार के इस युग में तीन कथाकारों के साझा–संकलन का प्रकाशन अपने आप में एक स्वस्थ परंपरा की स्थापना है। प्रायः ही बड़े साहित्यकारों में भी आपस में अहं के टकराव होते पाए गए हैं। ऐसे में साझा–संकलनों का अपना एक विशिष्ट महत्त्व है। तीनों रचनाकारों के २४–२४ लघुकथाओं के इस साझा–संग्रह को एक ‘मोटिवेटर‘ के रूप में भी देखा जा सकता है। उन्होंने तीनों कथाकारों को उत्कृष्ट लेखन के लिए बधाई दी।
समारोह के मुख्य अतिथि और वरिष्ठ शायर डा काशिम ख़ुर्शीद ने पुस्तक और कथाकारों पर विस्तारपूर्वक समीक्षात्मक चर्चा की और कहा कि विगत तीन–चार दशकों में कथा की इस विधा में बिहार ने अपना बड़ा महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है, जिसमें डा सतीशराज पुष्करणा के साथ ममता मेहरोत्रा और डा ध्रुब कुमार का प्रशंसनीय अवदान है। ममता जी ने तो कथा–साहित्य में अनेक भाषाओं में अनुदित होने का एक कीर्तिमान ही स्थापित कर दिया है।
डा राधाकृष्ण सिंह ने कहा कि लघुकथाएँ देखने में सरल अवश्य होती हैं किंतु प्रस्तुति की दृष्टि से यह बहुत कठिन विधा है। लेखक को इसके रचना–विधान की कसौटी पर खरा उतरना होता है। चर्चित शायर समीर परिमल, श्री हरिमंदिर साहिब गुरुद्वारा प्रबंधक कमिटि के महासचिव सरदार महेंद्रपाल सिंह ‘ढ़िल्लन‘, सम्मेलन के उपाध्यक्ष नृपेंद्रनाथ गुप्त, डा कल्याणी कुसुम सिंह तथा लोकार्पित पुस्तक के रचनाकार डा ममता मेहरोत्रा एवं डा ध्रुब कुमार ने भी अपने विचार व्यक्त किए। मंच का संचालन योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने तथा धन्यवाद–ज्ञापन कृष्णरंजन सिंह ने किया।
इस अवसर पर, वरिष्ठ शायर रमेश कँवल, राज कुमार प्रेमी, डा अर्चना त्रिपाठी, बच्चा ठाकुर, श्रीकांत सत्यदर्शी, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, मधुरेश नारायण, सिद्धेश्वर, विश्वनाथ वर्मा, संजू शरण, पंकज प्रियम, अमृता सिन्हा, प्रभात कुमार धवन, डा कुमार गंगेश गुंजन, बाँके बिहारी साव, बिंदेश्वर प्रसाद गुप्ता, गोपाल शर्मा, आनंद मोहन झा, सरदार त्रिलोकी सिंह, रूपक शर्मा, नीलेश्वर मिश्र तथा प्रभास चंद्र शर्मा समेत बड़ी संख्या में साहित्यकार एवं प्रबुद्धजन उपस्थित थे।